रंग डालूंगी आज तो प्रीतम को लाल
साँवले गालों पर मथ कर गुलाल
देखें नहीं चढता कैसे मेरा रंग सांवरे पर
सारे गुरुर होंगे आज भंग बावरे पर
नटखट हरजाई मोह लेता है अपनी मुस्कान से
भोली सूरत और सौतन मुरली की तान से
बैरी पवन भी बल देती है मन के हिचकोले को
उतार फेंकू पुराने फीके आडंबर के चोले को
होलिका का दहन है हुआ आस्था के हवन में
हर खंब में है बसता नरसिंह भक्ति के भवन में
आनंद रस बहता है तोड़ संकोच की खोली
प्राणों के ताले खोल आज खुल कर खेलूं होली
Beautiful Bhakti rachnaa……….