ये दिल तरसता है
जब होती है बरसात बादल गरजता है
साजन तुझसे मिलने को ये दिल तरसता है
के याद आने लगी, के जान जाने लगी
सावन के महीने में क्यों चले गए परदेस
काँटों सी लगती है ये फूलों भरी सेज
आंसू ऐसे बहते हैं के गगन बरसता है
साजन तुझसे मिलने को ये दिल तरसता है
के याद आने लगी, के जान जाने लगी
मौसम भी ऐसा है के ये दिल तड़पाता है
रह-रह के तेरी यादों के सपने सजाता है
मीठी-मीठी हवाओं मैं जब दुपट्टा सरकता है
साजन तुझसे मिलने को ये दिल तरसता है
के याद आने लगी, के जान जाने लगी
अब तो तू आजा ज़ालिम ओर ना देर लगा
प्यार करने की मुझको इतनी ना दे सज़ा
तेरे ही इंतज़ार में अब हर पल गुज़रता है
साजन तुझसे मिलने को ये दिल तरसता है
के याद आने लगी, के जान जाने लगी
लेखक : सर्वजीत सिंह
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“मीठी-मीठी हवाओं मैं जब दुपट्टा सरकता है
साजन तुझसे मिलने को ये दिल तरसता है”
सर्वजीत उपरोक्त दो लाइने आपकी इस रचना को अद्भुत खूबसूरती दे रही है.इस तरह की उपमा मैंने पहले नहीं पढ़ी बहुत खूब.
आपकी प्रेरणादायक, ऊर्जावान प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद मधुकर जी !
विरह वेदना को समेटे हुए बहुत खूबसूरत गीत रचना की है आपने यक़ीनन आप इसको किसी फिल्म या सीरियल में इस्तेमाल कर सकते है …. अतिसुन्दर सर्वजीत जी ….!!
आपकी अति सुंदर सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद निवातियाँ जी !