मोहब्बत के मसीहा तुम, लिए तलवार चंगेजी ;
दिलों की बात करते हो, मगर नीयत है खूँरेजी |
अदावत है अगर मुझसे , जरा मैदान में आओ ;
दीवाना सब समझता है , पुरानी चाल अंग्रेज़ी ||
तू क्याचाहे तेरी मर्ज़ी , मगर इतना बता दूँ मैं ;
मैं वादे सब निभाऊगा , नही इक बूँद हमदर्दी |
दिलों से खेलने का जो , शगूफ़ा पाल रखा है ;
अगर माहिर खिलाड़ी तुम , नही हम भी फकत फर्ज़ी ||
कभी काबिल समझना तुम मुझे , अपनी मोहब्बत का ;
निगाहें तुम झुका लेना , ज़माना हम झुका लेंगे||
beautifully expressed
THANKS swati ji …………
सुशील मुहब्बत में भी अपने को संभाले रखने का यह हुनर तो वास्तव में अद्वितीय है. अति सुन्दर भाव.
धन्यवाद मधुकर जी …..
बहुत अच्छे शुशील जी अंतिम पक्ति ने रचना को मुकम्मल कर दिया ….!!
धन्यवाद निवातियाँ जी …………