ऐ जाते हुऐ लम्हें(गज़ल)
ऐ जाते हुऐ ठहर क्यू नहीँ जाता
जो बीत चूका हैं वो गुज़र क्यू नही जाता
ना चाहते हुऐ भी ढूँढती क्यू हैं निगाहें
किया बात हैं इतना क्यू चाहता हैं तुम्हें
तुम्हारे जैसे तो नही सारे जहाँ में
पास होकर भी दूर क्यू हो जाता
मै अपनी ही राहों मे क्यू भटक रहा
मेरी मंजिल पास क्यू नही आता
वो ख़्वाब अगर हैं तो बिखर क्यू नही जाता
किया बात हैं वक़्त ठहर क्यू नही जाता
जो बीत गया हैं वो गुज़र क्यू नही जाता
ऐ जाते हुऐ लम्हें ठहर क्यू नही जाता ।
****मु.जुबेर हुसैन*****