तुम्हारे प्रेम की चादर का वो आलिंगन
सर्द रातों में सदा मुझे देती है वो तपन
चोटों पे जब भी निकली है हृदय से क्रंदन
सहारा बना है हमेशा तेरा ये बदन
तुम्हारे समर्पण की सुगंध से बना है चंदन
सुरभित करता है हर अंग तेरा ये बदन
घर आँगन हुआ रौशन जब आई तेरे रूप की किरन
भास्कर बना है मन जैसे हुआ हो सितारों का मिलन
आत्मा तेरे तप से बन गया है कुन्दन
बुद्ध बना है जीवन जबसे मिला तेरा चुम्बन
प्रेम की उपमेयमय पराकाष्ठा का अच्छा उदहारण पेश किया उत्तम जी … उम्दा !!
सुन्दर प्रेम रचना उत्तम जी जिसमे आपकी कृतज्ञता झलकती है
उतम जी उतम रचना
Bahut sunder………….
Aap sabhi ka abhar.