मैं खुश हूँ
अपेक्षाएं, आकांक्षाएं बड़ी हैं
लाखों परेशानियां खड़ी हैं
राह में बाँहें पसारे
नाम लेकर मुझे पुकारे
मैं खुश हूँ
दूर रहूँ अरमानों के साये से
वर्तमान को डसते काये से
आज आसमान खूब नीला है
चाहे सपना लुभावना रंगीला है
मैं खुश हूँ
कुल्फी की तरह पिघल जाती है मंजिलों की मिठास
फिर शुरू होती है एक और दर्द में डूबी तलाश
नित्य बढ़ती जाती है कुछ पाने की प्यास
लेकिन रह जाती है फिर भी खुशियों की आस
मैं खुश हूँ
मनुष्य हूँ मैं, यही है मेरा नाम
मानवता की खुशी ही है मेरा काम
आस्था की छतरी तले बसता आनंद धाम
फिक्र क्यों करूँ जब साथ मेरे हैं राम
मैं खुश हूँ
और खुश रहूँगा सदा
ये पल सिर्फ मेरा है
नहीं कर सकता कोई इसे जुदा
बस यही पल है जो तेरा है
मैं खुश हूँ
उत्तम जी सुन्दर रचना. जिंदगी का फलसफा आपकी रचना में समाहित है