झूटे मानवता और पशु प्रेमियों की पोल खोलती मेरी कुछ पंक्तियाँ—-
रचनाकार- कवि देवेन्द्र प्रताप सिंह “आग”
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लाठी मारी घोड़े को आगे पर पीछे का टूटा
फर्जी पशू प्रेमियों का देखो कैसा गुस्सा फूटा
हाहाकार मचा दी चौथे लोकतंत्र के खम्बे ने
पोल खोल दी आज दोगलों की इस नये अचम्भे ने
अरे जम्हूरो भरमाओ ना हमको क्या है ज्ञान नहीँ ?
पशु प्रेमी है कौन, कौन कातिल है हमको भान नहीँ ?
मानवता के रखवाले अख़लाक़, वेमुला पर रोते
ना रोते मिश्रा पर ना संघी की हत्या पर रोते
मानवता के रक्षक बनते हैं और बनते पशु प्रेमी
मुँह क्यों सिल जाते जब होती सरेआम ही बेरहमी
ईद और बकरीद पे खेल खून के खेले जाते हैं
लाखों जीव, पशू जब काल-गाल में पेले जाते हैं
रोज़ कत्ल होता है गौमाता का बूचड़खानों में
तब ये पशु प्रेमी सो जाते हैं किस घाट घरानों में
ये देवेन्द्र “आग” कहे क्यों झूटा ढोल बजाते हो
पशु प्रेमी बनते हो फिर क्यों माँस पशू का खाते हो
हैं औलाद नपुंसक की और दो मुहे हैं साँप सभी
ईश्वर भी ना माफ करेगा इन दुष्टों के पाप कभी
शर्म अगर थोडी बाकी तो धर्म कर्म को खूब करो
या फिर लेलो चुल्लू भर पानी और उसमें डूब मरो
———-कवि देवेन्द्र प्रताप सिंह “आग”
नोट- झूटे पशु, मानवता प्रेमियों की पोल खोलने हेतु share करें
(कॉपीराइट)
वाकई कविराज आप आग हो। क्या लिखते हो
शुक्रिया जी ????