कोई तो राज़ होगा जो तुम करीब आ गए
मेरे सीने में दिल की धड़कन बन समां गए
ग़म के घने गुबार में जब हम गुम से हो गए
मेघ से बरस तुम हमें राहे मंज़िल दिखा गए.
दो जिस्म एक जान हों मौक़ा हमें नहीं मिला
लेकिन तेरे करम से मेरा उजड़ा चमन खिला
प्यार की दौलत लुटी तो हंगामा सा हो गया
झोलियाँ भरने की खातिर सारे गरीब आ गए
कोई तो राज़ होगा जो तुम करीब आ गए
मेरे सीने में दिल की धड़कन बन समां गए
ग़म के घने गुबार में जब हम गुम से हो गए
मेघ से बरस तुम हमें राहे मंज़िल दिखा गए.
मुहब्बत कोई भी देश जाति धर्म नहीं मानती
सामने महबूब के वो कुछ भी नहीं पहचानती
इसके प्यासे ढूँढ़ते है इसके नशे को उम्र भर
मिलते नहीं वो शख्स जो ऐसे नसीब पा गए
कोई तो राज़ होगा जो तुम करीब आ गए
मेरे सीने में दिल की धड़कन बन समां गए
ग़म के घने गुबार में जब हम गुम से हो गए
मेघ से बरस तुम हमें राहे मंज़िल दिखा गए.
यूँ तो अपने इस जहाँ में रिश्तों की भरमार है
लोग भी दावा करें कि हमको उन से प्यार है
लेकिन मुझे तो बस उस शख्स की तलाश है
जन्नत छोड़ जो कह सके मेरे हबीब आ गए
कोई तो राज़ होगा जो तुम करीब आ गए
मेरे सीने में दिल की धड़कन बन समां गए
ग़म के घने गुबार में जब हम गुम से हो गए
मेघ से बरस तुम हमें राहे मंज़िल दिखा गए.
सोचा था तिनके संग तूफां से बच जाएंगे हम
ठंडी घनेरी छाँव में घायल बदन जलते हैं कम
नफरत भरी आंधी मगर चारों तरफ ऐसी चली
हद ए निगाह तक सभी मंज़र अजीब आ गए
कोई तो राज़ होगा जो तुम करीब आ गए
मेरे सीने में दिल की धड़कन बन समां गए
ग़म के घने गुबार में जब हम गुम से हो गए
मेघ से बरस तुम हमें राहे मंज़िल दिखा गए.
शिशिर “मधुकर”
अति उत्तम ! Very Nice Madhukar Jee.
सर्वजीत आपकी सराहना का बहुत बहुत आभार
Bahut hi umda likha hai aapne
इन्दर रचना पढ़ने और पसंद करने के लिए अनेकों आभार
हमेशा की तरह भावनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति !
मीना जी आपकी तारीफ़ का तहे दिल से शुक्रिया
सुंदर अभिव्यक्ति
रचना सराहने के लिए आपका आभार दुष्यंत
खूबसूरत गीत बन पड़ा है शिशिर जी ………….उम्दा रचना !!
Thank you so very much Nivaatiyaa ji for your appreciation