बैठी हूँ सन्नाटे में…..मन मे लेकिन शोर है…..
उजाले से लिपटी हूँ…..पर अंधेरा हर ओर है…..
कुछ हसरतें हैं मन में…..जो सिकुङ-सिकुङ के रहती हैं…..
बह जाने की धुन मे न जानें क्या क्या सहती हैं…..
जेब की भार की चाह ने देखो क्या बना दिया…..
मंजिलों को छोङकर भेङचाल को पनाह दिया…..
कदम तो चलना सीख गए लेकिन थिरकना भूल गए…..
खिला दिए फूल पर महक छिङकना भूल गए…..
न फिकर थी,न जश्न था..अब मैं जिंदगी की गुलाम हूँ…..
पहचान पत्र लगा के आज भी गुमनाम हूँ…..
दूसरों की बहुत पढी..सोचा चलो खुद की कहानी लिखा दूँ…..
कोरे पन्नों को समेटूँ और सूखी स्याही गिरा दूँ…..
-स्तुति त्रिपाठी
bahut khoob likha hai
thnk you so mch 🙂
सुन्दर भाव अभिव्यक्ति
Thank you so much 🙂
अतिसुन्दर रचना
Thank you so much………..!!
बहुत खूबसूरत स्तुति .. मनोअभिव्यक्ति को वजनदार शब्दो में ढालने के कार्य प्रशंशनीय है !
Dhanyavad. !! 🙂
बैठी हुँ सन्नाटे में……… मन में लेकिन शोर है….. वाह-वाह
thnqqq so mch 🙂