जिंदगी को कोई जुआ कहता है, तो कोई जंग कहता है,
धर्म कहे नदिया की धार, जिसमे हर कोई संग बहता है !!
ये तो मौसम की तरह है,
रुत इसकी आनी जानी है
देखकर फलसफा जिंदगी का
यहां हर कोई दंग रहता है !
जिंदगी को कोई जुआ कहता है, तो कोई जंग कहता है,
धर्म कहे नदिया की धार, जिसमे हर कोई संग बहता है !!
कोई जीता है इसे खेल समझकर
किसी को लगती ये एक पहेली है,
इसमें उलझा है हर एक इंसान
लड़कर सब उलझनों को सहता है
जिंदगी को कोई जुआ कहता है, तो कोई जंग कहता है,
धर्म कहे नदिया की धार, जिसमे हर कोई संग बहता है !!
कोई वरदान समझकर के
जीवन का लुफ्त उठाता है
कोई समझकर इसको बोझ
व्यर्थ अकर्मण्य बना रहता है
जिंदगी को कोई जुआ कहता है, तो कोई जंग कहता है,
धर्म कहे नदिया की धार, जिसमे हर कोई संग बहता है !!
किसी की लगती है ये दुआ जैसी
तो कोई इसको अभिशाप कहता है
ये तो बनी अर्धांग्नी बस उस की ही
जो हर सुख दुःख में सम रहता है
जिंदगी को कोई जुआ कहता है, तो कोई जंग कहता है,
धर्म कहे नदिया की धार, जिसमे हर कोई संग बहता है !!
घटनाओं की सप्तरंगी बेला
जीवन को फूलो सा महकाती है
कर्मयोग का साथ जो कभी ना छोड़े
वो यहाँ मर कर भी जिन्दा रहता है
जिंदगी को कोई जुआ कहता है, तो कोई जंग कहता है,
धर्म कहे नदिया की धार, जिसमे हर कोई संग बहता है !!
निवातियाँ जी इस रचना में आपके भावों को शब्दों में पिरोते समय कही कमी रह गई है. यदि आप कहेंगे तो प्रस्तुत करूंगा
सही कहा आपने शिशिर जी अधूरेपन का अहसास मुझे भी है ….प्रस्तुत करने का आपको पूर्ण अधिकार है अब अवश्य आप ही कीजियेगा !!
जिंदगी को कोई जुआ कहता है, तो कोई जंग कहता है,
धर्म कहे नदिया की धार, जिसमे हर कोई संग बहता है !!
ये तो मौसम की तरह है,
रुत इसकी आनी जानी है
देखकर फलसफा जिंदगी का
यहां हर कोई दंग रहता है !
जिंदगी को कोई जुआ कहता है, तो कोई जंग कहता है,
धर्म कहे नदिया की धार, जिसमे हर कोई संग बहता है !!
कोई जीता है इसे खेल समझकर
किसी को लगती ये एक पहेली है,
इसमें उलझा है हर एक इंसान
लड़कर सब उलझनों को सहता है
जिंदगी को कोई जुआ कहता है, तो कोई जंग कहता है,
धर्म कहे नदिया की धार, जिसमे हर कोई संग बहता है !!
कोई वरदान समझकर के
जीवन का लुफ्त उठाता है
कोई समझकर इसको बोझ
व्यर्थ अकर्मण्य बना रहता है
जिंदगी को कोई जुआ कहता है, तो कोई जंग कहता है,
धर्म कहे नदिया की धार, जिसमे हर कोई संग बहता है !!
किसी की लगती है ये दुआ जैसी
तो कोई इसको अभिशाप कहता है
ये तो बनी अर्धांग्नी बस उस की ही
जो हर सुख दुःख में सम रहता है
जिंदगी को कोई जुआ कहता है, तो कोई जंग कहता है,
धर्म कहे नदिया की धार, जिसमे हर कोई संग बहता है !!
घटनाओं की सप्तरंगी बेला
जीवन को फूलो सा महकाती है
कर्मयोग का साथ जो कभी ना छोड़े
वो यहाँ मर कर भी जिन्दा रहता है
जिंदगी को कोई जुआ कहता है, तो कोई जंग कहता है,
धर्म कहे नदिया की धार, जिसमे हर कोई संग बहता है !!
Nivaatiyaan ji , please consider above and give your opinion.
बहुत खूब शिशिर जी, मन के भावो को सार्थक शब्द प्रदान करने के बहुत बहुत धन्यवाद , आपने मेरी मनोव्यथा को उचित दिशा प्रदान की है !