सभी हमें जानते हैं
अपना हमें मानते हैं
सभी मेरा मेरा करते हैं पूजा
जैसे उन्हें काम नहीं कोई दूजा।
ऐसे भी लोग हैं
जो स्वार्थ में लिप्त हैं
ख्याल नहीं उन्हें किसी का
अपने में ही संलिप्त हैं।
जो दूसरों को भूल कर
करता है सिर्फ अपना काम
कष्ट जब पड़े उस पर
ढूंढे हमें घूमे चारों धाम।
मानव मानवता न भूलो
सभी का तुम सुनो
कर्म प्रधान है यह जगत
कर्म कर्तव्य से न तुम मुङो।
तुम न बनो मृग मरीचका
मैं हूँ तुम्हारे अंदर
हमें पाने की तुम्हारे अंदर
होनी चाहिए प्रबल इच्छा।
खूबसूरत रचना …..!!
धन्यवाद श्रीमान सब आप लोगों का आशीर्वाद है।