Homeअज्ञात कविगिला गिला निशा अज्ञात कवि 02/03/2016 1 Comment अब तो दुआ के लिए हाथ भी नहीं उठते ना जाने कैसा ये गिला हमें अपने खुदा से है फ़ैलाते नहीं झोली नहीं माँगते कोई मन्नत वजह नहीं कोई ,पर रास्ते अब अपने जुदा से है निशा Tweet Pin It Related Posts “किस्मत ” ———–काजल सोनी मेरा ठिकाना-5—मुक्तक—डी के निवातियाँ काल और शून्य ! About The Author sunnisha One Response Shishir "Madhukar" 02/03/2016 निशा आपने मन के दर्द की गहराई को बहुत चंद शब्दों में बड़ी ही सुंदरता से कहा है Reply Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.
निशा आपने मन के दर्द की गहराई को बहुत चंद शब्दों में बड़ी ही सुंदरता से कहा है