बस हमसे ये गुनाह न हो मोहब्बत वेपनाह न हो
तुझे वाहों मे समेट लूँ अगर तू हमसे खफा न हो
मौका नही मिलता उनसे जिक्रे मोहब्बत करने का
जुबान हमारी कह भी दे नजरो की अगर ह्या न हो
चुराकर हमने तुमको ख्आवो मे लाकर बसा लिया
अब वो ख्आव मेरे रहें अधूरें जिसमें तेरी वफा न हो
ख्आवो को सूरज ढल चला अब तो सुबह होने ही दो
वो मेरी सुबह ही क्या जिसमे तेरा नशा न हो
दो पल मिले है इश्क के इन्हें इस तरह गुजार दें
मैं ना तुझसे खफा रहूँ तू भी मुझ से खफा न हो
कुछ यूँ मिलें हम उस वक्त साँसों मे महक भी घुल गयी
दोनो की चाहत इस तरह थी अब इसमे कोई सदा न हो
ना तुम बोलो न हम बोलें ये मुलाकात यूँ ही रहें
निगाहो की वाते हो रही है अब इसमे जुबां न हो
अति सुन्दर रचना……………..
धन्यवाद प्रतिक्रिया के लिये
wahh.. wah …………..
धन्यवाद प्रतिक्रिया के लिये
अति सुन्दर ……….!!