सिसकती रात से चाँद ने पूछा
हुआ क्या आज तुझे जो रोना पड़ा …..
बेवजह इन नादान आंशुओ से
आज की खूबसूरती को खोना पड़ा ….
सितारे भी उदास है उधर
एक बार नज़र फेर कर देख …..
सुनकर ये बात चाँद की
फफक कर रो पड़ी रात …
आज फिर नहीं हो पायी उस प्यारे बच्चे से मेरी मुलाकात
आखिर क्या है गलती मेरी मुझे समझ आता नही
सुबह से शाम बाहर ही खेलता है वो बच्चा …
इसी पेड़ के नीचे गिल्ली और कंचा….
शाम के बाद आ जाती है उसकी माँ
बोलती है हो गया बहुत खेल
चल घर अब होने वाली है रात…..
कभी मिलने ही नहीं देती मुझसे उस बच्चे की माँ
ना जाने क्या है मुझ में वो बुरी बात ….
आखिर मैं भी एक पहर ही हूँ
मुझे भी सबसे मिलने की है चाहत
सुबह और शाम कितने किस्मत वाले हैं
जो उन्हें सबका साथ मिलता है …
एक हमारा पहर है जो हमे सिर्फ वीरान लगता है …
बहुत सुन्दर रचना.
बहुत ही खूबसूरत रचना अंकिता जी ..
अतिसुन्दर ………………………….