तुझे पाने का रास्ता कहाँ से जाता है
हर रास्ता मंदिर मस्जिद के बीच टकराता है
इंसान बंटा अब यहा सिर्फ मजहबो में
इंसानियत का मजहब अब कौन निभाता है
न जाने कब लौंटेंगे अब वो मोहब्बत के ज़माने
आज तो हर कोई अपनो का दिल दुखाता है
दिल से दिल की डोर कमजोर हो गयी अब
मोहब्बत की निशानी को हर कोई नफरत से मिटाता है
है यकीन कि इक दिन खुदा मेरी पुकार सुनेगा
खुले नफरत की गांठ ये बन्दा तेर आगे सिर झुकाता है
हितेश कुमार शर्मा
सुन्दर रचना हितेश जी