जो दुल्हन की तरह सजी चली आ रही है l
मेरे ख्वावों,ख्यालों की ताबीर है ll
चन्द ऱोज पहले हम गए थे उसके शहर में,
और अपना सर्वस्व लुटा कर आ गए थे l
बो दिल्कश आवाज़ बो ढेर सारी बातें,
बो बिंदास अपनापन बो याद रहने बाली मुलाकातें l
आज बनी पाव कि जंजीर है ll
जो दुल्हन की तरह सजी ———-
जितना जाना है समझा है उसको,
उतना ही उसकी हो गया हूँ l
मैं बना हूँ रॉझा उसके दिल का,
बो बनी मेरे दिल की हीर है ll
जो दुल्हन की तरह सजी ———-
सोचता हूँ यह ख्वाव है या हकीकत,
गर ख्वाव है तो बहुत हसीन है l
और गर यह हकीकत है तो मानता हूँ उस खुदा को
जिस ने हमारे हाथों में खिंची ऐसी लकीर है ll
जो दुल्हन की तरह सजी ———-
भले ही आज मेरा खुद का कोई बजुद नहीं,
फिर भी उमिदें जिन्दा है l
जब कहेगा यह ज़माना वाह !
क्या तक़दीर है ll
जो दुल्हन की तरह सजी ———-
संजीव कालिया
सुन्दर गीत …………….
Thank you very much
अति सुन्दर ……!!