आ जाओ गांधी, भगत, सुभाष, ये देश आज तुम्हे पुकार रहा !
दिया जो तुमने अनमोल तोहफा आजादी का हो अपमान रहा !!एक दूजे के सब दुश्मन हो गए
हर कोई दूसरे पर कर प्रहार रहा
रोज कही पे पंगा, कही पे दंगा
और हो कही पर बलात्कार रहा !आ जाओ गांधी, भगत, सुभाष, ये देश आज तुम्हे पुकार रहा !
दिया जो तुमने अनमोल तोहफा आजादी का हो अपमान रहा !!भूल गए आज तुम्हारी कुर्बानी
अपना मतलब सबको याद रहा
जिसको दी देश की जिम्मेदारी
वो जीवन आनद से गुजार रहा !आ जाओ गांधी, भगत, सुभाष, ये देश आज तुम्हे पुकार रहा !
दिया जो तुमने अनमोल तोहफा आजादी का हो अपमान रहा !!कोई कहता यंहा क़ानून गलत है
कोई दोष संविधान में निकाल रहा
अपनी गलतियों का आभास नहीं
व्यर्थ गुस्सा व्यवस्था पे उतार रहा !आ जाओ गांधी, भगत, सुभाष, ये देश आज तुम्हे पुकार रहा !
दिया जो तुमने अनमोल तोहफा आजादी का हो अपमान रहा !!कौन है रक्षक, कौन है भक्षक
इसका नहीं अब कोई भान रहा
अपना ही अपने को मारने लगा
अब तो चहुँ और हो नरसंहार रहा !आ जाओ गांधी, भगत, सुभाष, ये देश आज तुम्हे पुकार रहा !
दिया जो तुमने अनमोल तोहफा आजादी का हो अपमान रहा !!सत्ता की भूख मिटाने को आज
सब नियम कायदो को भुला रहा
जुर्म की लंका में सब बावन गज के
नहीं अब कोई दूध का धुला रहा !आ जाओ गांधी, भगत, सुभाष, ये देश आज तुम्हे पुकार रहा !
दिया जो तुमने अनमोल तोहफा आजादी का हो अपमान रहा !!कोई आग लगाये, कोई तमाशा देखे
कोई नफरत की आंधी को चला रहा
असहाय निर्दोष की जान पे आई है
कही दोषी मजे से गुलछर्रे उड़ा रहा !आ जाओ गांधी, भगत, सुभाष, ये देश आज तुम्हे पुकार रहा !
दिया जो तुमने अनमोल तोहफा आजादी का हो अपमान रहा !!अब तो आ जाते इन आँखों में आंसू
देश “धर्म” का कितना हो बेहाल रहा
आ जाओ में मेरे देश के स्वभिमानो
देश का दुश्मन फिर तुम्हे ललकार रहा !!आ जाओ गांधी, भगत, सुभाष, ये देश आज तुम्हे पुकार रहा !
दिया जो तुमने अनमोल तोहफा आजादी का हो अपमान रहा !!!
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डी. के. निवातियां___
निवातियाँ जी जो दर्द मैं महसूस कर रहा था उस पर आपने और भी वृहद चिंतन किया है. बहुत प्रेरक.
धन्यवाद शिशिर जी ….. आपकी ह्रदय विशालता का आभारी हूँ .!!
निवातियाँ जी दिल को छूने वाली रचना !
अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद सर्वजीत जी !!
उत्कृष्ट भाव.. महोदय.
बहुत बहुत धन्यवाद चिराग जी !