भुला बिसरा कोई पंछी तेरे चमन में आ गया l
जी लेने दो दुनियां वालो छीनों न मुझ से फ़िजा ll
सोचा था जाऊंगा वहा पर,
है सात दरिया वहते जहाँ पर l
मन्दिर मस्जिद गिरजा गुरुघर
घौंसला बही बनाऊंगा l
पंख काटने को न भागों हिन्दू मुस्लिम सिख ईसा ll
जी लेने दो दुनियां वालो छीनों न मुझ से फ़िजा ll
भुला बिसरा कोई पंछी ———
भले ही अलग हो बोली मेरी
अलग हो मेरी काया l
अलग सभ्यता कि ओड़ी हो चादर
अलग हो धर्म की माया l
जिस का खून है तेरी रगों में
मैं भी हूँ उसी माँ का जाया l
छोड़ दो धर्म की लकीरें खिचना
करो न नाख़ून से मास जुदा ll
जी लेने दो दुनियां वालो छीनों न मुझ से फ़िजा ll
भुला बिसरा कोई पंछी ———
उस माली ने कोई कसर न छोड़ी
बगिया हरी भरी बनाने में
यह हम ही है जिस ने बाँट दिया भगबान को
उस कि नज़र में सब एक है “संजू”
चाहे राम कहो ! चाहे खुदा ll
जी लेने दो दुनियां वालो छीनों न मुझ से फ़िजा ll
भुला बिसरा कोई पंछी ———
संजीव कालिया
जी लेने दो दुनिया वालो छीनो न मुझसे फ़िज़ा
बहुत ही सुन्दर
Thank you sir