मेरे भारत के लोगों की किसने ये नाज़ुक हालत कर दी
छीना झपटी का रोग लगा और सीनों में नफरत भर दी
जिस दिन से आज़ाद हुए हम सबने सच से मुँह मोड़ा है
बस कुछ लोगों ने अपनी खातिर पूरे समाज को तोडा है
जाती धर्म में बाँट बाँट कर कहीं समरसता नहीं आती है
बँधी भुआरी ही तो आँगन का सारा कचरा संगवाती है
सब को सम शिक्षा तो दी ना इस आरक्षण का तंत्र दिया
भीड़ जोड़ बातें मनवाने का बस एक दूषित सा मन्त्र दिया
वंचित लोग कभी समाज में कोई व्याभिचार ना करते हैं
वो तो अपने अधिकारों की खातिर सच के संग में लड़ते हैं
फिर किन वंचित और पिछड़ों ने मुर्थल में नंगा नाच किया
माँ बेटियों की आबरू लूटी भारत के आँचल को तार किया
ऐसे लोगों को क्या कभी कोई जिम्मेदारी दी जा सकती है
जिनके दिल में नारी की खातिर हवस वहशियत बसती है
कैसा देश, इतिहास, संस्कृति हम तो अब केवल शर्मिन्दा हैं
बेमतलब घुट घुट जीते जाने को जाने क्यों कर के जिन्दा हैं
शिशिर “मधुकर”
वर्तमान परिस्थितयो के यथार्थ पर ह्रदय में वेदना का संचार स्वाभाविक है शिशिर जी ……!!
मगर अफ़सोस जितना समाज शिक्षित होता जा रहा है उतना ही संवेदनहीन और निर्मोही हुआ जाता है !!
निवातियाँ जी अपराध तो हर समाज में होता है लेकिन जितने पतन की ओर हमारा समाज चल पड़ा है वह बहुत चिंतनीय है. आपकी प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार
शिशिर जी, मन की व्यथा को अच्छे शब्दों में बान्धा है आप ने ।
निवातियां जी, समाज केवल literate रह गया है, educated नहीं । भावनाएं खो चुकी हैं, किसी को कष्ट में देख आज किसी को दुख नहीं होता ।
बिमला जी रचना पढ़ने के लिए धन्यवाद. मेरी चिंता में आपकी सहभागिता कुछ आशा तो जगाती है लेकिन रोग मेजर शल्य चिकित्सा मांगता है.
शिशिर जी, कसाइयों से शल्य चिकित्सा की उम्मीद?
बिमला जी हो सकता है अधिक गन्दगी देख कर कोई अशोक महान पैदा हो जाए
सही कहा शिशिर जी एवं बिमला जी …..सबसे बड़ी दुविधा तो यही है की हर कोई जानता है की क्या सही है क्या गलत है मगर फिर भी चंद आपराधिक प्रवृति सम्पूर्ण सभ्य समाज पर भारी है !
हर बुराई का अंत अवश्य होता है …हर एक रावण के लिय राम को अवतरित होना ही होता है !
सत्य कहा गणित का भी नियम है “after every maxima there comes a minima”.
Advut…….aapki kalam me jadu hai sirjee
कलम में इतनी ताकत होती है की वो लोगों के ह्रदय परवर्तित कर दे और आपकी कलम में वो बहुत बड़ी ताकत है मधुकर जी !
Thank you so very much Sarvjit ji for your lovely comment,
Shishir “Madhukar”
बहुत ही यथार्थ वादी और हर किसी की आत्मा को जनझोडति रचना….सब जानते हैं पर देखना यह की जागते कितने हैं….अप्रतिम….
बब्बू जी रचना पढ़ने और सराहने के लिए धन्यवाद