तुझ से जो नज़र मिली
तो मुस्कराना आ गया
तुम्हारी जुल्फ उडी जो हवा में
तो मौसम सुहाना आ गया
खबर नहीं थी कि इक दिन
इस दिल की ये आरज़ू पूरी होगी
उमीदों का सवेरा होगा
और हर शाम सिन्दूरी होगी
सुर अपने आप जुड़ने लगे
और मुझे गाना आ गया
तुझ से जो नज़र मिली
तो मुस्कराना आ गया
तुम्हारी पायल की छम-छम पर
दिल मेरा अब नाच उठा है
हसरतों के दरिया में अब
उफान सा कुछ आ चुका है
भंवर के बीच फंसी नाव
का अब ठिकाना आ गया
तुझ से जो नज़र मिली
तो मुस्कराना आ गया
तेरे बदन की खुशबु
हवाओं में जो मिल गयी
भटकते हुए मुसाफिर को
खोयी हुई मंजिल अब मिल गयी
तुम आई तो इस गरीब के पास
बादशाहों का खज़ाना आ गया
तुझ से जो नज़र मिली
तो मुस्कराना आ गया
तेरे होंठो की लाली को देख
फूल भी खिलना भूल गए
गुजरी थी जो उम्र तेरे बिन
जिंदगी क वो दिन फजूल गए
ये तेरी नज़र का ही कमाल है
कि मुसाफिर को मंजिल पाना आ गया
तुझ से जो नज़र मिली
तो मुस्कराना आ गया
हितेश कुमार शर्मा
कर्णप्रिय प्रेम गीत हितेश जी
Sirjee Aapka ghazal padh kar hamein v muskurana aa gaya
Aap ka bahut bahut shukriya