परिवर्तन जीवन का नियम हैं
पर इतना भी क्या ठीक है?
मनुष्यों का हृदय परिवर्तन
इंसान से हैवान बन जाना।
नहीं-नहीं यह ठीक नहीं
परिवर्तन नियम है, जीवन है
प्रकृति, मनुष्य और परिवेश का
परिवर्तन कुछ हद तक ठीक है।
प्रकृति का परिवर्तन मानवत तक
मनुष्य का परिवर्तन मानवता तक
समाज का परिवर्तन मानवता तक
यहाँ तक ठीक है, इससे आगे नहीं।
आज समय का है परिवर्तन
यहाँ-वहाँ बस है परिवर्तन
इस परिवर्तन के समय में
झेल रहें है हम परिवर्तन ।
चरो तरफ है अहं भाव बस
अपने-अपने में परिवर्तन
कर्म-धर्म सब में परिवर्तन
अंजाम क्या होगा ये परिवर्तन?
हम भूल गए सब रिस्ते-नाते
हम भूल गए सब अपनों को
हम भूल गए सब मानवता को
बस दिख रहा है ये परिवर्तन।
मिट रही मानवता सब की
भूल रहे है सभ्यता को
भूल रहे अपनी संस्कृति
यही देख रहे परिवर्तन को।
भाई-भाई अब दुश्मन है
एक न दूसरे की सुनता
आपस मे लड़-मरते है
बस यही तो ले आया परिवर्तन।
परिवर्तन हो तो ऐसा हो
हर समाज अपना-सा हो
हर लोग अपने से हों
हर काम अपना सा हों।
अधर्म से धर्म में हो परिवर्तन
मैं से हम में हो परिवर्तन
जाति से समाज में हो परिवर्तन
समाज से देश में हो परिवर्तन।
तभी तो होगा असल परिवर्तन
हृदय का होगा मानवता-सा रंग
सब लोग झूम के गाऐंग
आपस में प्यार तब पाऐंग।
परिवर्तन, परिवर्तन, परिवर्तन,
नियम है, जीवन है, सत्य है परिवर्तन
मनुष्य का हो मानवता में परिवर्तन
तभी तो होगा असल परिवर्तन।
-संदीप कुमार सिंह