तेरी चाहत का ये एहसास कितना सुन्दर है
तेरी तस्वीर ही दिखती मेरे दिल के अन्दर है
तूने मुझ पर जो विश्वास करना छोड़ दिया
प्रेम के धागे को अपने हाथ से ही तोड़ दिया
बिन बन्धनों के तू भी राहों में भटक सी गई
प्रेम की बेल बेरुखी से जलीं चटक सी गई
नसीब से तूने वक्त पे खुद को संभाल लिया
भंवर में डूबती किश्ती को भी निकाल लिया
लचकती नाव अब गर तूफां में फंस जाएगी
जिंदगी लौट के फिर वापस कभी ना आएगी.
शिशिर “मधुकर”
प्रेमबंधन के महत्त्व को बताती खूबसूरत रचना !!
Thank you very much Nivatiyaa ji for reading and commenting
बिन बन्धनों के तू भी राहों में भटक सी गई
प्रेम की बेल बेरुखी से जलीं चटक सी गई…
बहुत ही सुन्दर लिखा है….
सराहना के लिए आभार विजय जी