-:करुण पुकार:-
हे हंसवाहिनी ! वीणापाणि !
तम को वेध प्रकाश भरो।
अहंकार के वशीभूत ,
मानव का उद्धार करो।
दिग्भ्रमित हुए हैं धरा-पुत्र,
कैसे अभिमान करेंगे।
रणक्षेत्र बना है ज्ञानालय,
कलुषित इतिहास रचेंगे।
हे वाग्देवी ! हे वीणापाणि !
ज्ञान सुधा संचार करो।
क्षुद्र ज्ञान के वशीभूत,
मानव का उद्धार करो।
अश्रुविगलित माँ की आँखें,
कैसे आहलाद भरेंगे।
जब छद्मवेश से ऊपर उठ,
माटी के लाल बनेंगे।
हे माँ शारदे ! वीणापाणि !
प्रेम सुधा संचार करो।
विषाक्त भाव के वशीभूत ,
मानव का उद्धार करो।
डॅा राखी रानी,
देवघर महाविद्यालय, देवघर
प्रार्थना के भावों से सुन्दर कटाक्ष किया है आपने ..खूबसूरत रचना राखी जी ..
दिग्भ्रमित हुए हैं धरा-पुत्र,
कैसे अभिमान करेंगे।
रणक्षेत्र बना है ज्ञानालय,
कलुषित इतिहास रचेंगे।….
बहुत सुन्दर रचना….
अति सुन्दर शब्दो से युक्त भावयुक्त प्रार्थना
सुन्दर शब्दावली से सुसज्ज्ति भावनात्मक विनती !!
Nice thought, well shared… please keep it up.