जो जहाँ भी जहाँ से उठता है .
तो ज़नाजा वहाँ से उठता है .
बात पूरी नहीं करी तो फिर.
अक्द तेरी जबां से उठता है.
आब ही तो है जान मोती की .
भाव उसका वहाँ से उठता है.
कश्तियाँ डूब डूब जाती हैं.
यह बवंडर कहाँ से उठता है .
बस्तियां खाक ही न हो जाये.
ये धुँआ सा कहाँ से उठता है.
आग से खेलता भला क्यां है.
ये पतंगा कहाँ से उठता है.
इल्म तो ‘हिन्दुस्तान’ से आया .
शोर सारे जहाँ से उठता है.
गंगा धर शर्मा ‘हिंदुस्तान’
बहुत खूबसूरत रचना. आक्द का अर्थ क्या होता है?