पत्थर दील पे मेरे अब कोई असर न होगी ।
मर भी गये तो अब तुमको खबर न होगी ।
खो जायेंगे उस अँधेरी तनहा रातों मे ,
के गर सूरज भी निकले तो सहर न होगी ।
तुम्हे देखता रहे चाहे सारा जहाँ मगर ,
निगाहें मोहब्बत की तुम पर नजर न होगी ।
चाहोगे मुझे गर ख्वाब मे भी बुलाना ,
तो आँखे तुम्हारी बन्द रात भर न होगी ।
ढूंढ़ते रहोगे चेनो राहत रात दिन ,
सुकुन से जिंदगी फिर भी बसर न होगी ।
लाख कोशिसे करोगे गर मर जाने की तुम ,
तुम्हारी जिंदगी फिर भी मुख़्तसर न होगी ।
-एझाझ अहमद
बहुत सुन्दर रचना…..
पढ़ने के लिये..धन्यवाद..!
kya baat hai…bahut khub
very nice ……………….!!
Thank you To All of You
सुन्दर रचना है एज़ाज़ जी ..
वाह…हर वाक्य काफी अनोखा था…