जब दिल में बसे लोग दिल को दुखाते हैं
हसरतों के हसीन ख्वाब सारे टूट जाते हैं
अपनी तड़प की हमनें जब भी दी दुहाई
तेरी सदा कभी मुझ तक लौट के ना आई.
उजड़े हुए चमन में मैं खुशबु कहाँ से लाऊँ
बंज़र हुई धरती पर अब कैसे गुल उगाऊँ
फूलों को भी खिलने को नरम धूप चाहिए
प्रीत निभाने को भी श्रद्धा का रूप चाहिए.
शिशिर “मधुकर”
दिल को छूती हुई सुन्दर रचना।
रचना पढ़ने और सराहने के लिए आपका आभार देवेन्द्र
बहुत ही सुन्दर लिखा है……..
आपकी तारीफ का बहुत बहुत शुक्रिया
खूबसूरत भाव प्रस्तुत करती अच्छी रचना … अंतिम पद ने रचना को अलंकृत कर दिया…… बहुत खूब शिशिर जी !!
Thank you so much Nivaatiyaan ji for your wonderful comments on this work.
सुन्दर रचना शिशिर जी ..
ऑमेन्द्र आपका बहुत बहुत धन्यवाद
वाह………..क्या कमाल है शब्दों को ज़ुबाँ देने का……बेहतरीन….