विभक्त करे
जो देश स्वाभिमान
है अपमान,
बना विचित्र
खेल बलिदानों का
जन्मी आशंका,
भुला दिया वो
शहादत का किस्सा
गांधी अहिंसा,
बदली सोच
आज बनी नमूना
यादों को रोना,
पुष्प भी रोये
भाग्य की लकीरों में
झूठी शानों में,
किस पथ मैं
खोज रहा आकाश
बुझा प्रकाश,
पाठशाला ने
सिखाई देशभक्ति
या राजनीति,
…….. कमल जोशी …….
प्रश्न चिन्ह छोड़ती सुंदर रचना !!
आभार निवातियां जी
सुन्दर मानसिक द्वन्द दर्शाती रचना व अच्छा व्यंग