जिस दिन से हमें तेरे हँसी चेहरे का दीदार हुआ
हर कली, फूल और चमन से हमको प्यार हुआ
अपने रकीब की किस्मत से हमें भी रश्क हुआ
मेरा हर रोम रोम तेरी चाहत का तलबगार हुआ.
जवाँ सीनों में जब भी कोई प्रेम अगन जलती है
बर्फ सी जम चुकी ये नदियाँ भी तब पिघलती हैं
दिल के जज़्बातों में बस वो सच्चाई होनी चाहिए
कुदरत तकदीरों में लिखे लेखों को भी बदलती है .
शिशिर “मधुकर”
अति -सुंदर रचना .
आपका बहुत बहुत आभार ओनीका
उम्दा …… बहुत अच्छे शिशिर जी !!
निवातिया जी बहुत बहुत धन्यवाद सराहना के लिए