Homeनरेन्द्र मोहनसन्नाटा सन्नाटा अशोक धर नरेन्द्र मोहन 28/02/2012 3 Comments मैं रंगों से हो कर रंगों में गया हूँ रेखाओं से निकल कर रेखाओं में समाया हूँ यह संयोजन नहीं सन्नाटा है नहीं, सन्नाटे का रंग-दर्शन है जहाँ मैं हूँ मैं नहीं हूँ कहाँ गुम हो गया है मेरा शब्द क्या शब्द से बाहर है यह सन्नाटा ? Tweet Pin It Related Posts चित्र में माँ जंगल स्मृति : एक हादसा About The Author अशोक धर I am Hindi poem lovers and publish poems at hindisahitya.org 3 Comments Yashwant Mathur 06/12/2012 कल 07/12/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है . धन्यवाद! Reply sangeeta swarup 07/12/2012 बोलता सन्नाटा Reply indu singh 07/12/2012 सन्नाटे के भावों को बखूबी बयाँ करती रचना !! Reply Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.
कल 07/12/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
बोलता सन्नाटा
सन्नाटे के भावों को बखूबी बयाँ करती रचना !!