“माँ नहीं पढ़ना है मुझको अब
ना विद्यालय मै जाऊंगा
अनपढ़ रहना है अच्छा
ना गाली तुझे मै दिलाऊंगा,
पढ़-लिखके लोग जहाँ पे
अपने ही देश को गाली देते है
करते बदनाम है शिक्षा को वे
अभिव्यक्ति की भी बलि देते है ,
किस मुँह से माँ मै विद्यालय जाऊ
कहीं मै भी देशद्रोही ना बन जाऊ
बहकावे में आके मै भी इनके
कहीं देशद्रोह ना कर जाऊ ,
पढ़ लिखके लोग यहाँ पे
गद्दारी देश से कर जाते है
भले है उनसे हम अनपढ़ जो
जो देशहित में बलि चढ़ जाते है ,
पढ़ लिखकर माँ मुझको भी
देशद्रोही ना कहलाना है
बनके कृषक पुनः मुझको
देश सेवा में लग जाना है ||”
यह रचना बहुत सुन्दर है और व्यन्ग भी है
आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद शिशिर जी ..
अतिसुन्दर व्यंगात्मक रचना ….!!
धन्यवाद निवातिया जी ..