“क्या खूब आज
गद्दारी दिखती है
खून में यहाँ |
अपने लोग
है लुटते अश्मत
माँ बहनों की |
मूक दर्शक
बन जाते है हम
सुनते गाली |
देशद्रोह को
धड़कता है दिल
अपने लोग |
नामर्द यहाँ
हुआ है संविधान
पहने चूड़ी |
टुकड़े होगा
फिर भारत जल्द
मनाओ ख़ुशी |
हो बेइज्जत
सहता देशद्रोह
अँधा कानून ||”
मेरा मत है नामर्द के स्थान पर ओर शब्द प्रयोग करो. रचना सत्य परक है.
सुझाव के लिए धन्यवाद शिशिर जी..पर मै समझता देशद्रोह जैसा काम करने वालों के लिए तथा उनका समर्थन करने वालों के लिए इससे उपयुक्त शब्द नहीं हो सकता …कविता के गरिमा लांघने के लिए क्षमा चाहता हु ,पर अपने रोष को मै नहीं रोक पा रहा हु ..
रचना के भाव अच्छे है ….. ओमेन्द्र जी ! लेकिन कानून और संविधान की उपेक्षा तर्क संगत नही है क्योकि ये दोनों मानवीय गतिविधि पर आधारित है… जैसे चाक़ू का प्रयोग आप फल काटने में करते है या जीव हत्या में इसमें चाक़ू का दोष नही !!
निवातिया जी मै यह कहने के लिए क्षमा चाहता हु परन्तु विश्व में सिर्फ और सिर्फ भारत का ही संविधान ऐसा है जो की देशद्रोह करने की तथा देश के साथ गद्दारी करने की इजाजत देता है …और जहा तक प्रश्न है इस देश की बर्बादी का तो शत प्रतिशत हमारा संविधान इसके लिए उत्तरदायी है .यदि संविधान में कोई कठोर दंड का प्रावधान होता तो शायद हमारा देश को इस स्थिति का सामना नहीं करना पड़ता ..
मित्रवर…… इसमें दोष संविधान का नही ऐतेव इसके चालकों का है जो अपने पद प्रतिष्ठा के अनुरूप इसका दुरूपयोग करते है….. जब व्यक्ति कर्तव्य को भूलकर सिर्फ अधिकारों के प्रति महत्वकांशी हो जाता है इसका दोष अन्यत्र कानून या संविधान पर नही होना चाहिए … जहां तक मैंने पढ़ा, जाना और समझा है यही पाया है है की ………….इसमें कोई संशय नही की भारतीय संविधान विश्व का सबसे बेहतरीन और सक्षम संविधान है, जिसके अनेको उदहारण हमारे समक्ष है !!