जाग प्रतिदिन रात्रि को,
विचार जीवन के अनुभवों से,
बाँटने मित्रों, परिजनों से,
दे मात निद्रा व स्वप्नों को,
कविता रोज़ मैं करता हूँ ,
कविता रोज़ मैं करता हूँ ………
कभी संघर्षों पर विचार,
कभी विचारों से संघर्ष करता हूँ,
उतारने अनुभव जीवन के कागज़ पर,
उठा कापी, पेंसिल, कागज़ काले करता हूँ,
कविता रोज़ मैं करता हूँ ,
कविता रोज़ मैं करता हूँ …………
बन जाती कभी रहती अधूरी
कभी विचारों को न मिलती धूरी,
रिपु बन,कभी निद्रा सताती,
कभी जीवन की चिंता बाधा बन जाती,
कर एकत्रित सभी विचार,
फिर से साहस करता हूँ,
कविता रोज़ मैं करता हूँ,
कविता रोज़ मैं करता हूँ ……..
प्रातः उठ बैडमिंटन खेल लौट कर,
मित्रों को चाय पर आमिन्त्रित करता हूँ,
बैठ पत्नी, मित्रों संग, चाय की चुस्की भरता हूँ,
फिर निकाल धीरे से कापी,
उनके सन्मुख नई कविता प्रस्तुत करता हूँ,
कविता रोज़ मैं करता हूँ,
कविता रोज़ मैं करता हूँ ……..
Wonderfully written poem and an easy to understand in simple language. One of the best so far this year. I congratulate Ravi. Wish, he will continue to pen many more such refreshing poem in near future.
Thanks Kunal Sir, your appreciation is a source of Inspiration. I have written poetry on various topics. Will publish here.
आपने अपनी भावनाओ और अनुभव को साझा करने का सही माध्यम चुना हैं वैसे भी अकेला व्यक्ति विचार ही दे सकता है. सब कुछ बदल तो नहीं सकता
शिशिर जी, आपसे बिलकुल सहमत हूँ, धन्यवाद !
V.nice poem
Kuch apni khani
धन्यवाद नीरज जी, कवियों मे बहुत कुछ समान पाया जाता है .