देखो आज बसंत ऋतु आई
चारो तरफ हरियाली है छाई,
रंगों का घर बनी भूधर
नीलगगन मे चिड़िया है मुस्काई,
बागो की कलिँया आज फूल बनी
जिन्हें देखकर तितली ने दौड़ लगाई,
कुदरत के अनोखे त्योहार को देख
अब सर्दी ने ली है विदाई,
आज सरस्वती माँ की पूजा कर
मैने माँगी है ज्ञान की गहराई,
छोटी सी जिंदगी मे कामयाब होने की
बसंत ऋतु मे कसम है खाई।।
नीरज चौरसिया “विद्यार्थी” कानपुर
प्रयास अच्छा हैं ………..
Thanks sir
ये मेरी पहली कविता है।
प्रयास रत रहें….
मै प्रयास करूंगा