Homeअज्ञात कविकाल और शून्य ! काल और शून्य ! avadheshkhanna अज्ञात कवि 14/02/2016 2 Comments एक मे नीहित है, सर्वे समाहित है, काल की कल्पना, शून्य मे आहित है। मूल अमूल्य है, सूक्ष्म ही स्थूल है, काल की दृढता, शून्य की धूल है। प्रेम प्रतीति है, चेत ही अनुभूति है , काल की वेगना, शून्य की विभूति है। – अवधेश Tweet Pin It Related Posts मुहब्बत – बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा (बिन्दु) चमचागीरी-69 हो तो अजनबी “” “””””””सविता वर्मा About The Author avadheshkhanna 2 Comments Shishir "Madhukar" 15/02/2016 सुन्दर आध्यात्मिक रचना Reply निवातियाँ डी. के. 15/02/2016 अति सुंदर ……………!! Reply Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.
सुन्दर आध्यात्मिक रचना
अति सुंदर ……………!!