लोग क्या-क्या बेचते हैं
कोई साज बेचता है
कोई समान बेचता है
कोई जमीन बेचता है
कोई जात बेचता है
कोई रिश्ता बेचता है
कोई नाता बेचता है
कोई बफा बेचता है
कोई ईमान बेचता है
यहाँ तक की लोग
अपना जमीर बेचते हैं
मैं देश बेचती हूँ
तो , बड़ा क्या है
अपना सब कुछ लुटाके
समाज को बुराई से से बचा के
मैं दंश झेलती हूँ
मैं तन बेचती हूँ
मैं तन बेचती हूँ।
अति सुन्दर भाव व कटाक्ष
धन्यवाद श्रीमान सब आप सभी के सहयोग है।