“असहाय हुआ है भारत आज
अपने ही घर के गद्दारों से
खोये है इसने वीर सदा ही
अपने ही जयचंदो के वारों से ,
इस मिट्टी में उगते है जो लोग
क्यूँ सहसा मिट्टी के हो जाते है
लेके साँस इसकी आबों हवा में
क्यूँ दुराचारी बन जाते है ,
लाखों पुण्य किये जो इसने
पल में माटी कर जाते है
अपमानित कर इस वसुधा को
क्यूँ गर्व बहुत जताते है ,
क्यूँ गंदे है लोग यहाँ के
जो इनके ताल में ताल मिलाते है
जीवनदायी अपनी इस वसुधा को
क्यूँ अपशब्द सुनाते है,
वेद पढ़ाये जाते थे कभी जहा
वहाँ आतंकी पूजते है आज
जयकारों से महिमा होती उनकी
देशभक्ति वहीँ बुझती है आज ||”
सत्यपरक रचना ओमेन्द्र
आपकी मूल्यवान प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार शिशिर जी …