गज़ल
खुद से खुदा तक जाने की, राह अब जाने क्या होगी……
जुर्म इतने किये मैने, सजा अब जाने क्या होगी !!
गलतियों का मेरी कोई, हिसाब ही नहीं रहा………
याद भी नहीं अब तो, मैने नेकी कब और कहाँ की होगी !!
जब था फखीर मैं, अल्लाह का बन्दा था……..
जहाँ दिन रात दुआयें करता था, वो चौखट अब जाने कहाँ होगी !!
खो गया हूँ इतना शोहरतें-ए- जिंदगी के नशे में……
जाने उस खुदा की अब, मुझ पर रेहमत क्या होगी !!
जब से भूल गया मैं, रास्ता उस खुदा के दर का………
अब सोचता हूँ की, मेरी मंज़िल जाने क्या होगी !!
जब फिरता था मैं उन गलियों में, हर शख्स मुझे जनता था…….
अब खुदा की उन गलियों में, मेरी कीमत जाने क्या होगी !!
गुनाह किये मैने इतने, कैसे इन्हें मैं बयां करू………
जाने उस परबर दिगार की, अब मुझ पर नेमत क्या होगी !!
जब से भुला हूँ खुदा को, फिर उससे मैं मिला नहीं…….
अब मुझ काफिर की, उस खुदा से मुलाकात जाने कब होगी !!
रचनाकार : निर्मला ( नैना )
मानव जीवन को प्रेरित करती खूबसूरत रचना ..
बहुत बहुत धन्यवाद सर |
अति सुन्दर अंतर्द्वंद को प्रदर्शित करती विकासोन्मुख रचना
आप ने मेरी रचना को पसंद किया आपका बहुत बहुत आभार सधन्यवाद सर |