हिन्द धरा है परम वीरों की
करूँ मैं नमन बारम्बार
वतन के हित में जो बलि हुए
वो भारत के हैं अमूल्य उपहार
हैं वो बड़े भाग्यशाली
जो वतन के लिए जान गवांते
नहीं मिलता ऐसा नसीब सबको
सही में वो माटी का क़र्ज़ चुकाते
उनकी पावन चिता की राख को
आओ निज शीश धरे हम
उनके बलिदान को याद कर
अश्रूं संग नयन भरे हम
हिन्द इतिहास भरा है वीरों से
माटी इसकी चांदी -सोना है
बहुत हुआ अब और नहीं सहेंगे
अब कोई वीर हमें नहीं खोना है
जब राजनीती होती वीरों के बलिदान पर
हर देशभक्त का मन है रोता
निज स्वार्थ का चोला पहने
हमदर्दी दिखाते हैं कुछ राजनेता
वे हैं मतलबी और देशद्रोही नेता
है उनको बारम्बार धिक्कार
आओ सब मिलकर इनको सबक सिखाये
ये है भारतमाता की करुण पुकार
जागो जागो ! अब तो हिन्द के वासियो
धरम,जाति की बेड़ियों को अब तोडना है
देश द्रोह की भाषा बोलने वालो का
गर्व भरा मस्तिक अब हमें फोड़ना है
हितेश कुमार शर्मा
हितेश जी पहले चार पैरा के बाद रचना पटरी से उतर कर राजनीतिज्ञों की बात कर असली देशभक्ति के ज़ज़्बे को (जो ईमानदार, बेईमान इत्यादि सभी के लिए सामान है) कमज़ोर कर रही है. मेरा सुझाव है की आप पहले चार पैरा वाला भाव ही बनाए रखेंगे तो अति उत्तम होगा.
Ok sir thanks, I will correct as your suggested ..
अति सुन्दर , …….शिशिर जी का सुझाव पर अमल कर रचना को पूर्णत : वीरो के प्रति समर्पित किया जा सकता है !!