* श्मशान घाट में जलेबी *
यहाँ न कोई मेला था ,
न किसी से किसी का झमेला था ,
कुछ समय पहले लोग
जहाँ वह रहता था ,
वहाँ लोग रो-रो कर एक दूसरे से ,
कुछ न कुछ उसके विषय में कहता था।
उसे उठा हरे खाट पर लिटा ,
उसे श्मशान घाट में ले आये
उसे नहाया फिर चिता सजाए ,
रो-रो परिजन उस में अग्नि लगाए ,
कुछ लोग नहाए कुछ जल छिट
स्वच्छ और शुद्ध होने का ढोंग रचाए।
श्मशान घाट में लोग जलेबी खाए ,
हाय यह रीत किस ने बनाया ,
कुछ पल पहले रोयें ,
फिर घाट में ही मिठाई खाए ,
पुनः घर वापिस आ
कर्म के नाम पर ढोंग में
ब्यस्त हो जाये।
नरेंद्र जी अगर आदमी की ऐसी भूलने की फितरत ना हो तो वह पागल हो जाए.लेकिन आपकी अब्ज़र्वेशन अच्छी हैं
जी आपने बिलकुल सही कहा है।हौसला अफजाइ के लिए धन्यवाद।
समाज मे फेली बूराई के लिए अच्छा व्गय खूबसूरत
व्यंगात्मक रचना के माध्यम से अच्छा संदर्शन !!
सही आब्जर्वेशन ..आजकल श्मशान घाट हैं कहाँ? मुक्ति धाम हो गए हैं और ले जाने के लिए स्वर्ग रथ ..जिन्दगी एक मजाक हो गयी है, इधर मुर्दा जलता है, उधर लोग हंसते हैं..
आप सभी ने बिलकुल सही कहा है।सभी को ? दिल से धन्यवाद । अरुण सर आपने सही कहा है लोग वहाँ पिकनिक जैसा ब्यवहार कर रहें हैं।अब तो लोग वहाँ शराब ? और मांस ? का भी इस्तेमाल करने लगे हैं।
वर्तमान परिवेश पर खूबसूरत रचना ..
धन्यवाद श्रीमान