न जागा हुआ हु न सोया हुआ हुँ,
मैं तो किसी की यादों में खोया हुआ हुँ,
दिल बारबार ये कहता है,
क्यु !आख़ीर तू इतना सहता है,
दिल पे चोट लगे तो सहना नहीं है आसान,
जाके कह दे उसे तु नहीं है भगवान,
यह वह घाव है जो मिटायें नहीं मीटता।
अदृश्य सा लगे सबको पर ज़ख़्म अदंर ही रहता,
क्यूँ न तू इतना ही रहम करदे , इस ज़ख़्म को खुद ही आके भर दे!
तब सायद इस दिल को चैन मीलें , मै कुछ देर तो सो पाऊँ ,
तेरे छुने से सायद मैं कूछ और दिन जी जाऊँ ।
सम्पा प्रेम विरह का बहुत सुन्दर वर्णन किया है आपने इस रचना में. बस धीरे धीरे मात्राओं का किसी हिंदी जानने वाले के साथ अभ्यास आपकी रचनाओं में और चार चाँद लगा देगा.
बेहद आभार । कोशिश जारी है शिशिर जी … आप सबका साथ और प्यार बना रहे । शुभकामनाएँ ।
प्रेम वियोग से परिपूर्ण भावनाओ का कबूसूरत वर्णन !! गैर हिंदी भाषी होने के बाबजूद आपकी हिंदी में रूचि को बनाये रखना काबिले-ऐ -तारीफ है, निरंतर अभ्यास जारी रखे !!
बहत बहत धन्यवाद निवातियाँ जी .. आप सबका हौसला अफ़्जाई मेरी कविताओं को अलग पहचान देती है , और मुझे और अच्छा लिखने कि प्रेरणा देती है । बेहद आभार व्यक्त करती हुँ। शुभकामना ।
बेहद खूबसूरत रचना …आपकी कविताओं की गंभीरता को देखके कोई ये नहीं कह सकता की आप हिंदी भाषी नहीं है ..आपके कविताओं की गंभीरता कविताओं की त्रुटियों को फीका कर देता है ..बहुत खूब सम्पा जी ..
बहत बहत शुक्रिया शुक्लाजी… आप सबकी हौशला अफ़्जाई और सुन्दर कथन मुझे और अच्छा लिखने की हिम्मत देती है ,और आप जैसे शुभचिंतकों को मै तहे दिल से शुक्रिया अदा कर रहि हु।