कोई चाहत मेरी हुई ना पूरी आँखों में दिखता रोष है
बंजर भूमि में फूल ना खिले बोलो ये किसका दोष है
मन में कितनी उम्मीदें लेकर हमने वो बाग़ लगाया था
अपने अमृत को बरसाने पर बादल वहाँ ना आया था
फिर भी हमनें कोशिश की अंकुर फूट ही जाएं कहीं
लेकिन बीजों ने मिट्टी को दिल से अपनाया ही नहीं
अपना उजड़ा बाग़ देखकर मन ही मन में हम रोते हैं
दर्द छुपाने को लोगों से नम दोनों आँखों को धोते हैं
सोचा है ये देश छोड़ अब किसी और दिशा में जाएंगे
फिर से किसी उपजाऊ भूमि में प्रेम की पौध उगाएंगे
शिशिर “मधुकर”
This a superb post!
Thank you so very much for your kind words
Heart touching beautiful creation…. Very Nice SHISHIR JI
Thanks a lot Nivatiyaa ji
Nice thoughts, leaving country and trying what one could not achieve in own country is the sentiment of many. I do not see myself a great hope for this country.
Thanks Ravi for reading my work and sharing your sentiments.
Shishir
भावात्मक अभिव्यक्ति !!
सराहना के लिए आपका आभार मीना जी
बहुत सुन्दर ,भावपूर्ण अभिव्यक्ति शिशिर जी ।
बिमला जी रचना पढ़ने और पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार
बहुत सुन्दर और दिल को छूने वाली कविता मगर देश छोड़ने वाली बात हजम नहीं हुई शिशिरजी।
मञ्जूषा जी यहाँ देश से मेरा अभिप्राय वर्तमान परिस्थितियों से है. यदि आप कोई और उपयुक्त शब्द प्रस्तावित करती हैं तो मैं विचार करूंगा
मधुकर जी क्या बात है ! इतने मायुश क्यों हो आप ! जो देश छोड़ने की बात सोच रहे हो आप ! इसमें देश का क्या दोष है ! आप की कविताय दिल को छू लेती है !
Thanks for reading and liking this work.
Nice post