मन है दर्पण इसे साफ रखो ,
इसमें न कोई दाग रखो।
मन मस्तिष्क है एक जोड़ी ,
एक घोड़ा तो दूसरी डोरी।
डोरी को अपने हाथ रखो ,
अपने आप पर विश्वास रखो।
मन है दर्पण इसे साफ रखो ,
इसमें न कोई दाग रखो।
मन चमकेगा तन चमकेगा ,
जीवन में रंग बरसेगा।
इसे जितना दृढ़ बनाओगे ,
उतना ही सफलता पाओगे।
मन है दर्पण इसे साफ रखो ,
इसमें न कोई दाग रखो।
मन है मंदिर मन है मस्जिद ,
मन ही चर्च और गुरुद्वारा है।
मन वो पवित्र स्थान है ,
जहाँ ईश्वर का वास है।
मन है दर्पण इसे साफ रखो ,
इसमें न कोई दाग रखो।
मन के हरे हार है ,
मन के जीते जीत।
मन को जैसा बनाओगे ,
वएसे ही मिलेंगे मीत।
मन है दर्पण इसे साफ रखो ,
इसमें न कोई दाग रखो।
दर्पण पर कलई चढ़ाते हैं ,
मन से कलई हटाते हैं।
जिसके मन में कल-छल है ,
वह जगत में सबसे निर्बल है।
मन है दर्पण इसे साफ रखो ,
इसमें न कोई दाग रखो।
नरेन्द्र का बस इतना कहना ,
मन में राग-द्वैष छल-प्रपंच न रखना।
मन निर्मल जगत निर्मल ,
न कोई संताप रखो।
मन है दर्पण इसे साफ रखो ,
इसमें न कोई दाग रखो।
अति उत्तम
वाह वाह क्या बात है
अनुशंसा के लिए धन्यवाद
अच्छे भाव युक्त रचना नरेंद्र जी
अनुशंसा के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
वास्तविकता को समेटे भावपूर्ण रचना ……… बहुत अच्छे नरेंद्र जी !
बहुत बहुत आभार सर जी
धन्यवाद श्रीमान