काश मिट जाती
सारी बेरुखियां अपनी
जैसे रेत पर लिखी तहरीर
मिट जाती है खुदबखुद
हवा की झोंको से
या समंदर की लहरों से
या फिर काश हम तुम ही मिलकर मिटा देते
इन बेरुखियों को
जैसे कोई रेत पर लिखता है
और मिटा देता है हाथों से
अस्वीकार करके लिखावट को
जिसका जीवन के किसी हिस्से में
न कोई मायने होता है
और न ही कोई जरुरत ।
सुन्दर लिखा है आपने ……….
आदर्शवाद प्रस्तुत करती अच्छी अभिव्यक्ति !!