चुप क्यों है तू हत्यारे
क्यों की तूने हत्या रे।
स्तब्ध धरा अम्बर जल तारे
यह घर कैसा जलता रे।
जो ना इसको अपनाना था
तो कह देते अपना ना था।
जीते जी क्यों हमको मारे
रो रो पूछ रही है माँ रे।
बात वही जो जमी नही
कि वजह हुई फिर जमीन ही।
बाग़ बगीचे आँगन सहमे
क्या पाया तू ऐसी शह में।
अब तेरा साम्राज्य रहेगा
पर न इस सम राज्य रहेगा।
देर न कर अब हत्यारे
कर मेरी भी हत्या रे।
…………….देवेन्द्र प्रताप वर्मा”विनीत”
very beautiful……
शब्द विच्छेद का प्रयोग कर पीड़ा व्यक्त करती सुन्दर रचना