कसूर किसका
इस दुनिया के खराब होने में
हाथ-हाथ में शराब होने में
दिलों के दूर होने में
अंदर की इंसानियत खोने में
इंसानी ज़मीर के सोने में
बच्चों के बुख से रोने में
कसूर किसका
गलत देख आवाज ना करने में
किसी के मज़बूरी सेें मारने में
हालात के आगे घुटने टेकने में
दूसरे के घर की आग से हाथ सेकने में
चलने की जगह रिगड़ने में
जरूरत पर रुकने की जगह निकलने में
कसूर किसका
लडकी होने से पहले रोकने में
हो जाये तो उसे हर काम पर टोकने में
सुरक्षा के नाम आज़ादी के खोने में
अंदर ही अंदर घुट घुटके रोने में
थक हारकर उसकी जीने की इच्छा खोने में
कसूर किसका
Very nice poem suggesting introinspection on several crucial issues
Thank you sir.I try my best to deliver some thing good.