ऐ कैसी स्वंतंत्रता
ऐ कैसी समानता
स्वंत्रतता के नाम पर
लोग उच्छल हो रहे
समानता के नाम पर
संस्कार संस्कृति छोड़ रहे
ध्रूमपान निषेध पर
बड़े-बड़े विज्ञापन आए
बाप बैठे बच्चों को समझाए
फिर भी बेटियाँ चौराहे पर कस लगाए
कर रहे प्रबंधन की पढाई
सब बंधन तोड़ रहें
दुनियाँ को किनारा कर
अनावश्यक नाता जोड़ रहे
ऐ कैसी स्वतंत्रता
ऐ कैसी समानता।
सत्य कहा नरेंद्र जी , वास्तविकता तो यही है की वर्तमान स्वरूप में आज वक्तिगत स्वार्थ के लिए स्वतंत्रता और समानता की परिभाषा ही बदल दी गयी है !
धन्यवाद श्रीमान सराहने के लिए।