सूख-दूख दो पहलू है जीवन के
यो दोनो खौफ है मन के,
जिस तरह हर रात
के बाद
होता है सवेँरा
वैसे ही हर बूरे के बाद होगा भला तेरा,
इन बातो को लेकर जब समाज रोता है
तब सवाल उठेँ मन मे
रोने से क्या फायदा होता हैँ,
गरीब हो या अमीर
साधूँ हो या फकीर,
सब आलोक उपाध्याय की बात मान लो
जिदंगी के दो सच जान लो,
सूख-दूख दो पहलू है जीवन के
ये दोनो खौफ है मन के…!