हिरणी की जैसी दो नेत्र
उपर दूज की चांद की
आकृति बनाता
काली नुकीली दो भौहें
उभरा चमकमता ललाट
एक लंबा उॅचा नाक
गुलाब की पंखुड़ी सी सुघड़ कपोल
व कली की मानिंद होंठ
लहराते लंबे काले केश
केवल चेहरे ही की तो संरचना देखी
ऐसा लगा कि
चांद ने अपनी सारी दीप्ती
तुझे अर्पित कर दी हो
और मैं सम्मोहित होता गया
ये तो प्रकृति प्रदत्त है –
प्रत्येक प्राणी सुंदरता के प्रति सम्मोहित होता है
इसमें मेरा अपराध क्या है?
बहुत सुन्दर । आपकी रचनाशीलता को नमन।