जब खा लेता हूं तो खाकर सो जाता हूं
बहुत चाहकर भी कविता लिख नहीं पाता हूं
अब जान पाया हूं कविता लिखने की शर्त
अब हटा है कवतिा की सच्चाई से पर्त
कविता भूखे को आती है और
मुर्झाए व सूखे को आती है
जब अटड़ीयां चिपक जाती है
जब पेट का क्रंदन आग बनके
हृदय पटल पर शिकायत लिए धमक जाती है
तब कविता आती है मस्तिष्क में
स्पंदन की जगह शब्द कहती छांॅती है
तब पन्नों पे जलती कलम की बाती है
कविता व्रत की प्राप्य है
कवतिा एक मौन जप है
एक सौ आठ गोटियों वाले कंठी की तरह
जो लगन व मगन से किया गया हो
कविता एक तप है
जैसे मां भूखती है जिउतिया
पत्नी करवा चैथ
बहन भईया दूज
या सब भूखते है तिज त्योहार
या ऋषि करता है तपस्या
या कोई एक दूजे से प्रेम
या प्रेम में चिंतन
वैसे कवि को भूखना पड़ता है कविता
करना पड़ता है तप व चिंतन
तब आती है कविता
रोज प्रतिदिन
जब वह लिखता है प्यारा कविता ।
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति।