संसार होता है
जब नींद में मग्न
दिन भर के उथल पुथल से
जुदा होकर शान्ति की सानिग्द्य में
तब कोई आंखे जागकर
कल्पना के जग में लवलीन
अंधेरे में कमरे के उपर छत पर
दृष्टि कहीं शून्य में टिकाए
कुछ न देखते हुए भी देखती है
अपने प्रियवर को अल्हड़ता के साथ
न बातें करते हुए भी वो करता है बातें
नटखटापन के साथ
अपने प्रियवर से
और करते करते सो जाता है
जैसे एक नन्हा सा बच्चा
लेटकर छत को देखते देखते
व मुस्कुराते खेलते हुए सो जाता है
कब कैसे ज्ञात ही नहीं होता
एक तनहा प्रेमी
किसी की याद में
बहुत सुन्दर । आपकी रचनाये हृदय को छू लेती है।